अपराध का अर्थ , परिभाषा तथा अपराध के प्रकार एवं चरण ( Meaning, Definition, and Stage of Crime)

अपराध का अर्थ , परिभाषा तथा अपराध के प्रकार एवं चरण ( Meaning, Definition, and Stage of Crime)



अपराध हर समाज एवं राष्ट्र के लिए एक गंभीर समस्या है।इस लेख में हम बात करेंगे अपराध की चरणों की। कोई भी कार्य एकदम से अपराध नहीं होता उसके लिए, उस कार्य का कुछ चरणों से होकर गुजरना आवश्यक होता है। यह चरण ही अपराध का निर्माण करते हैं।अपराध की यह प्रक्रिया युगों-गों युगों से चल आ रही है। जिसमें मे से बाल अपराध की समस्या तो और भी भयावह एवं गंभीर समस्या है।

अपराध का अर्थ ( Meaning of Crime )

अपराध का अस्तित्व समाज मे अनादि काल से प्रचलित रहा हैं। प्रारंभिक आदमी समाजों मे लोकरीतियां, प्रथाएं, व्यक्ति के आचरण को नियंत्रित करती थी एवं इनका उल्लंघन करने पर समूह के द्वारा दण्ड का विधान निश्चित किया जाता था। समाजशास्त्री दृष्टिकोण से अपराधी या बाल अपराधी वह है जो समूह द्वारा स्वीकृत किसी कार्य को करने का अपराधी हो, जो अपने विश्वास को लागू करने की शक्ति रखता हो, जिसे समाज हेतु खतरनाक समझकर उसे रोका जाना अवयश्क हो गया हो। आधुनिक जटिल समाजों मे व्यक्ति के आचरण को नियंत्रित करने पर किसी भी व्यक्ति के व्यवहार को दण्डिनीय अपराध माना जाता हैं। अपराध क्या हैं? इसे समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से समझने के लिए विभिन्न विद्वानों द्धारा अपराध की परिभाषाओं को जान लेना आवश्यक हैं।

अपराध की परिभाषा ( Definition of Crime )

भारतीय दंड संहिता की धारा 40 में अपराध को परिभाषित किया गया है," जिसके अनुसार इस एक्ट में दिया गया कोई भी कार्य अपराध होगा।"

सदरलैण्ड के अनुसार अपराध की परिभाषा; "अपराध सामाजिक मूल्यों के लिये ऐसा घातक कार्य है जिसके लिये समाज दण्ड की व्यवस्था करता है।

According to Blackstone
," अपराध एक ऐसा कृत्य या कृत्य का लोप है,जो सार्वजनिक विधि के उल्लंघन में किया गया हो।" 

According to Kenny ," अपराध उन अवैध कार्यों को कहते हैं जिन के बदले में दंड दिया जाता है और वह क्षम्य नहीं होते और यदि क्षम्य होते भी हैं तो राज्य के अन्य किसी को क्षमा प्रदान करने की अधिकारिता नहीं होती है।"

थोर्सटन सेलिन के अनुसार;
अपराध मानवीय समूहों के व्यवहार के आदर्श नियमाचारों का उल्लंघन हैं। 
 
डैरो के अनुसार; अपराध एक ऐसा कार्य है जो कि देश मे कानून के द्वारा निषिद्ध हो और जिसके लिए दण्ड निर्धारित हो।

पाॅल टप्पन के अनुसार;
एक सभिप्राय कार्य है या अनाचरण है जो दण्ड कानून का उल्लंघन करता हैं।

डां. सेथना
के अनुसार अपराध की परिभाषा; "अपराध कोई भी वह कार्य अथवा त्रुटि है जो किसी विशेष समय पर राज्य द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार दण्डनीय हैं।

बर्ट के अनुसार बाल अपराध की परिभाषा;
"उन बालकों को बालापराधी कहते हैं जिसकी समाज विरोधी प्रवृत्तियां इतनी गम्भीर हो जाती हैं कि उनके प्रति सरकारी कार्यवाही जरेरी हो जाती है।"

अपराध के प्रकार-अपराध की प्रकृति के अनुसार अपराध दो प्रकार के होते हैं–
1.संज्ञेय अपराध
2.असंज्ञेय अपराध
मुख्यतय भारतीय दंड संहिता में अपराध को तीन भागों में बांटा गया है– राज्य के विरुद्ध अपराध मानव शरीर के विरुद्ध अपराध संपत्ति के विरुद्ध अपराध




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